सगर, सौदास, खट्वांग और भगवान् रामके चरित्रका वर्णन
श्रीपराशरजी बोले -
काश्यपसुता सुमति और विदर्भराज - कन्या केशिनी ये राजा सगरकी दो स्त्रियाँ थीं ॥१॥
उनसे सन्तानोप्तत्तिके लिये परम समाधिद्वारा आराधना किये जानेपर भगवान् और्वने यह वह दिया ॥२॥
'एकसे वंशकी वृद्धि करनेवाला एक पुत्र तथा दुसरीसे साठ हजार पुत्र उत्पन्न होंगे, इनमेंसे जिसको जो अभीष्ट हो वह इच्छापूर्वक उसीको ग्रहण कर सकती है ।' उनके ऐसा कहनेपर केशिनीने एक तथा सुमतीने साठ हजार पुत्रोंका वर माँगा ॥३-४॥
महर्षिके ' तथास्तु' कहनेपर कुछ ही दोनोंमें केशिनीने वंशको बढ़ानेवाले असमज्जस नामक एक पुत्रको जन्म दिया और काश्यपकुमारी सुमतिसे साठ सहस्त्र पुत्र उप्तन्न हुए ॥५-६॥
राजकुमार असमज्जसके अंशुमान् नामक पुत्र हुआ ॥७॥
यह असमज्जस बाल्यावस्थासे ही बड़ा दुराचारी था ॥८॥
पिताने सोचा कि बाल्यावस्थाके बीत जानेपर यह बहुत समझदार होगा ॥९॥
किन्तु यौवनाके बीत जानेपर भी जब उसका आचरण न सुधरा तो पिताने उसे त्याग दिया ॥१०॥
उनके साठ हजार पुत्रोंने भी असमज्जसके चरित्राका ही अनुकरण किया ॥११॥
तब, असमज्जसके चरित्रका अनुकरण करनेवाले उन सगरपुत्रोंद्वारा संसारमें यज्ञादि सन्मार्गका उच्छेद हो जानेपर सकल-विद्यानिधान, अशेषदोषहीन, भगवान् पुरुषोत्तमके अंशभूत श्रीकपिलदेवसे देवताओंने प्रणाम करनेके अनन्तर उनके विषयमें कहा - ॥१२॥
" भगवान् ! राजा सगरके ये सभी पुत्र असमज्जसके चरित्रका ही अनुसरण कर रहे हैं ॥१३॥
प्रभो ! संसारमें दीनजनोंकी रक्षाके लिये ही आपने यह शरीर ग्रहण किया है ( अतः इस घोर आपत्तिसे संसारकी रक्षा कीजिये ) । " यह सुनकर भगवान् कपिलने कहा, " ये सब थोड़े ही दिनोंमें नष्ट हो जायँगे" ॥१५॥
इसी समय सगरने अश्वमेध - यज्ञ आरम्भ किया ॥१६॥
उसमें उसके पुत्रोंद्वारा सुरक्षित घोड़ेको कोई व्यक्ति चुराकर पृथिवीमें घुस गया ॥१७॥
तब उस घोड़के खुरोंके चिह्नोका अनुसरण करते हुए उनके पुत्रोंमेंसे प्रत्येकने एक - एक योजन पृथिवी खोद डाली ॥१८॥
तथा पातालमें पहूँचकर उन राजकुमारोंने अपने घोड़ेको फिरता हुआ देखा ॥१९॥
पासहीमें मेघावरणहीन शरत्कालके सूर्यके समान अपने तेजसे सम्पूर्ण दिशाओंको प्रकाशित करते हुए घोड़ेका चुरानेवाले परमर्षि कपिलको सिर झुकाये बैठे देखा ॥२०॥
तब तो वे दुरात्मा अपने अस्त्र - शस्त्रोंको उठकर ' यही हमारा अपकारी और यज्ञमें विघ्न डालनेवाला है, इस घोड़ेको चुरानेवालेको मारों, मारो' ऐसा चिल्लाते हुए उनकी और दौडे़ ॥२१॥
तब भगवान् कपिलदेवके कुछ आँख बदलकर देखते ही वे सब अपने ही शरीरसे उप्तन्न हुए अग्निमें जलकर नष्ट हो गये ॥२२॥
महाराज सगरको जब मालुम हुआ कि घोड़ेका अनुसरण करनेवाले उसके समस्त पुत्र महर्षि कपिलके तेजसे दग्ध हो गये हैं तो उन्होंने असमज्जसके पुत्र अंशुमान्को घोड़ा ले आनेके लिये नियुक्त किया ॥२३॥
वह सगर - पुत्रोंद्वारा खोदे हुए मार्गसे कपिलजीके पास पहूँचा और भक्तिविनम्र होकर उनका स्तुति की ॥२४॥
तब भगवान् कपिलने उससे कहा, " बेटा ! जा, इस घोड़ेको ले जाकर अपने दादाको दे और तेरी जो इच्छा हो वही वर माँग ले । तेरा पौत्र गंगाजीको स्वर्गसे पृथ्वीवीपर लायेगा" ॥२५-२६॥
इसपर अंशुमान्ने यही कहा कि मुझे ऐसा वर दिजिये जो ब्रह्मदण्दसे आहत होकर मरे हुए मेरे अस्वर्ग्य पितृगणको स्वर्गकी प्राप्ति करानेवाला हो ॥२७॥
यह सुनकर भगवान्ने कहा, " मैं तुझसे पहले ही कह चुका हूँ कि तेरा पौत्र गंगाजीको स्वर्गसे पृथिवीपर लायेगा ॥२८॥
उनके जलसे इनकी अस्थियोंकी भस्मका स्पर्श होते ही ये सब स्वर्गको चले जायँगे ॥२९॥
भगवान् विष्णुके चरणनखसे निकले हुए उस जलका ऐसा माहात्म्य है कि वह कामनापूर्वक केवल स्नानादि कार्योंमें ही उपयोगी हो - सो नहीं, आपितु, बिना कामनाके मृतक पुरुषके अस्थि, चर्म, स्नायु अथवा केश आदिका स्पर्श हो जानेसे या उसके शरीरका कोई अंग निरगेसे भी वह देहधारीको तुरंत स्वर्गमें ले जाता है । " भगवान् कपिलके ऐसा कहनेपर वह उन्हें प्रणाम कर घोड़ेको लेकर अपने पितामहकीं यज्ञशालामें आया ॥३०-३१॥
राजा सगरने भी घोड़ेके मिल जानेपर अपना यज्ञ समाप्त किया और ( अपने पुत्रोंके खोदे हुए ) सागरकी ही अपत्य स्नेहसे अपना पुत्र माना ॥३२-३३॥
उस अंशुमान्के दीलीप नामक पुत्र हुआ और दीलीपके भगीरथ हुआ जिसने गंगाजीको स्वर्गसे पृथिवीपर लाकर उनका नाम भागीरथ कर दिया ॥३४-३५॥
भगीरथसे सुहोत्र, सुहोत्रसे श्रुति, श्रितिसे नाभाग, नाभागसे अम्बरीष, अम्बरीषसे सिन्धद्वीप, सिन्धुद्विपसे अयुतायु और अतुतायुसे ऋतुपर्ण नामक पुत्र हुआ जो राजा नलका सहायक और द्युतक्रीडाका पारदर्शीं था ॥३६-३७॥
ऋतुपर्णका पुत्र सर्वकाम था, उसका सुदास और सुदासका पुत्र सौदास मित्रसह हुआ ॥३८-४०॥
एक दिन मृगयाके लिये वनमें घूमतें घुमतें उसने दो व्याघ्र देखे ॥४१॥
इन्होंने सम्पूर्ण वनको मृगहीन कर दिया है - ऐसा समझकर उसने उनमेंसे एकको बाणसे मार डाला ॥४२॥